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ग़ज़ल
रुख़ उस का देख हुआ ज़र्द नय्यर-ए-आज़म
सुनहरे बुर्ज से जिस दम वो मह-लक़ा निकला
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
गौहर-ए-शबनम-ए-गुल नय्यर-ए-आज़म हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
नज़र आलम की बन जाए वो होगा कब बशर पैदा
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
करीम रूमानी
ग़ज़ल
नया आलम नज़र आता जो मैं महव-ए-फ़ुग़ाँ होता
ज़मीं ज़ेर-ए-क़दम होती न सर पर आसमाँ होता
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
नया आलम नज़र आता जो मैं महव-ए-फ़ुग़ाँ होता
ज़मीं ज़ेर-ए-क़दम होती न सर पर आसमाँ होता
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
'आज़म' बजा है सीम-तनों का ग़ुरूर-ए-हुस्न
क़ुदरत है उन की बात में जादू नज़र में है
आज़म जलालाबादी
ग़ज़ल
जब शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी से घबराता हूँ मैं
तेरी यादों से दिल-ए-मुज़्तर को बहलाता हूँ मैं
सेवक नैयर
ग़ज़ल
क्यों कर वो कर सकेगा भला अपना सर बुलंद
हर ख़ास-ओ-आम की जो नज़र में हक़ीर हो