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ग़ज़ल
बिसात-ए-दहर में ग़ाफ़िल भला जीने का हासिल क्या
कि मरना भी जहाँ पर हो वबाल-ए-दोश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
वो रद्द-ए-ख़ल्क़ हूँ मैं गर डूब कर मरूँगा
मुर्दा मिरा वबाल-ए-दोश-ए-हबाब होगा