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ग़ज़ल
ब-नीम-ग़म्ज़ा अदा कर हक़-ए-वदीअत-ए-नाज़
नियाम-ए-पर्दा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर से ख़ंजर खींच
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वदीअत-ख़ाना-ए-बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ हूँ
नगीन-ए-नाम-ए-शाहिद है मिरे हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़र्रे ज़र्रे को है इक फ़र्ज़ वदीअ'त हक़ से
न समझ तो कोई क़ैसर नहीं फ़ग़्फ़ूर नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
वदीअ'त की है क़ुदरत ने वो मीज़ान-ए-नज़र मुझ को
कि ख़ूब-ओ-ज़िश्त आलम को बख़ूबी तौल सकता हूँ
सीमाब बटालवी
ग़ज़ल
वो लतीफ़ कैफ़ियत जो तिरी चश्म की अता है
ये वदीअ'त-ए-इलाही कहाँ बादा-ए-कुहन में