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ग़ज़ल
कभी तो नस्ल-ओ-वतन-परस्ती की तीरगी को शिकस्त होगी
कभी तो शाम-ए-अलम मिटेगी कभी तो सुब्ह-ए-ख़ुशी मिलेगी
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ग़ज़ल
आलम निज़ामी
ग़ज़ल
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ
वतन की ख़ाक ले कर एक मुट्ठी छोड़ देता हूँ
अहमद कमाल परवाज़ी
ग़ज़ल
ऐ दुनिया वालो दुनिया में अख़्लाक़ की पस्ती ला'नत है
क़ुरआन गवाही देता है शैतान की हस्ती ला'नत है