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ग़ज़ल
जिस से भी हाथ मिलाया है वो पुर-जोश मिला
जिस में रहता हूँ मैं 'ज़मज़म' कहीं कूफ़ा तो नहीं
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
इतना पुर-जोश मेरे दर्द का धारा तो न था
क्या पस-ए-पर्दा कहीं क़ुर्ब तुम्हारा तो न था
जली अमरोहवी
ग़ज़ल
उस की आँधी की तरह फ़ितरत बड़ी पुर-जोश थी
ऐसे मौसम में दिए हों या शरर रहते नहीं
मोहम्मद नईम जावेद नईम
ग़ज़ल
नाला-ए-शब-गीर हो पुर-जोश हो तूफ़ान-ए-अश्क
अब्र-ए-बाराँ की भी इस के सामने क़ीमत नहीं