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ग़ज़ल
नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से
तंग आया हूँ मैं इस पुर-सोज़ दिल के साज़ से
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
जल उट्ठे शम्अ के मानिंद क़िस्सा-ख़्वाँ की ज़बाँ
हमारा क़िस्सा-ए-पुर-सोज़ लहज़ा भर तो कहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
सीना के तबक़ में है कबाब-ए-दिल-ए-पुर-सोज़
जिस दिन से ग़म-ए-हिज्र है मेहमान हमारा
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
शिद्दत-ए-शौक़ से अफ़्साने तो हो जाते हैं
फिर न जाने वही आशिक़ कहाँ खो जाते हैं
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
हज़ारों मंज़िलें फिर भी मिरी मंज़िल है तू ही तू
मोहब्बत के सफ़र का आख़िरी हासिल है तू ही तू
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
रक़ीब-ए-जाँ नज़र का नूर हो जाए तो क्या कीजे
ज़ियाँ दिल को अगर मंज़ूर हो जाए तो क्या कीजे
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
खींच लाया तुझे एहसास-ए-तहफ़्फ़ुज़ मुझ तक
हम-सफ़र होने का तेरा भी इरादा कब था
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
दिल के रिश्ते को मिरी जान कोई नाम न दे