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ग़ज़ल
तुझ को परवाह नहीं वादे की तो अपने न सही
प्यार का दिल में छुपाया है समुंदर मैं ने
ज्योती आज़ाद खतरी
ग़ज़ल
ताबीरों को ढूँड रही हूँ ख़्वाबों की परवाह नहीं
मंज़िल पर ही नज़र है मेरी रस्तों की परवाह नहीं
वाला जमाल एल-एसिली
ग़ज़ल
उश्शाक़ की परवाह नहीं ख़ुद तुझ को वगरना
जी तुझ पे फ़िदा करने को तय्यार बहुत हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
जिसे न होश है ख़ुद का न फ़िक्र दुनिया की
तो उस को सोचिए परवाह-ए-जग-हँसाई क्या