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ग़ज़ल
मेरे दिल में जज़्ब हो कर रह गया तेरा वजूद
तू जिसे हासिल वो परछाई उठा कर ले गया
विजेंद्र सिंह परवाज़
ग़ज़ल
हम तो परछाई हैं बस इश्क़ की ऐ तेग़-ए-वक़्त
हम को काटे से भला इश्क़ का क्या हो जाना
चंद्रशेखर पाण्डेय शम्स
ग़ज़ल
रूह से रूह का मेल है या'नी रूहों की परछाई में
जिस्म पे जिस्म की आराइश है शर्म की पर्दा-दारी है
यायावर दीवाना
ग़ज़ल
दरख़्तों की वो परछाई वो आँगन का खुला होना
कहाँ आती है अब चिड़िया घरों में चहचहाने को
हेमा काण्डपाल हिया
ग़ज़ल
मुझ से बिछड़ी मेरी परछाई किसे आवाज़ दूँ
तू बता ऐ दौर-ए-तन्हाई किसे आवाज़ दूँ