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ग़ज़ल
माथे पे पसीना क्यूँ आँखों में नमी कैसी
कुछ ख़ैर तो ही तुम ने क्या हाल-ए-जिगर देखा
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
बयाबान-ए-फ़ना है बाद-ए-सहरा-ए-तलब 'ग़ालिब'
पसीना तौसन-ए-हिम्मत तो सैल-ए-ख़ाना-ए-जीं है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है
बहे पसीना मुखड़े पर या सूरज पिघला जाए है