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ग़ज़ल
जाने किस ख़ाक में पोशीदा हैं आँसू मेरे
किन फ़ज़ाओं में मुअ'ल्लक़ हैं तुम्हारी बातें
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
मिरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है
साक़ी फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
बुलंदी चाहिए इंसान की फ़ितरत में पोशीदा
कोई हो भेस लेकिन शान-ए-सुल्तानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
देखिए किस हुस्न से पोशीदा ग़म का राज़ है
तीर मेरे दिल में है पर्दे में तीर-अंदाज़ है
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
फ़रहान सालिम
ग़ज़ल
हाँ हाँ मिरे इस्याँ का पर्दा नहीं खुलने का
हाँ हाँ तिरी रहमत का है काम ख़ता-पोशी
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
मैं जिस हुनर से हूँ पोशीदा अपनी ग़ज़लों में
उसी तरह वो छुपा सारी काएनात में है