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ग़ज़ल
छीना था दिल को चश्म ने लेकिन मैं क्या करूँ
ऊपर ही ऊपर उस सफ़-ए-मिज़्गाँ में पट गया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तितलियों के पर किताबों में कहीं गुम हो गए
मुट्ठियों के आइने में एक चेहरा रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
उधर उस की निगह का नाज़ से आ कर पलट जाना
इधर मरना तड़पना ग़श में आना दम उलट जाना
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सुर्ख़ी ने उन लबों की किया आशिक़ों का ख़ून
लाली जमी जो पट के तो क्या रंग लाए होंठ