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ग़ज़ल
मिरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
तिरे हाथ से मेरे होंट तक वही इंतिज़ार की प्यास है
मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ये दिल की तिश्नगी है या नज़र की प्यास है साक़ी
हर इक बोतल जो ख़ाली है भरी मालूम होती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
बे-ताबी कुछ और बढ़ा दी एक झलक दिखला देने से
प्यास बुझे कैसे सहरा की दो बूँदें बरसा देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
रस्ता देखने वाली आँखों के अनहोने-ख़्वाब
प्यास में भी दरियाओं जैसी बातें करते हैं