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ग़ज़ल
उस को तो पैराहनों से कोई दिलचस्पी न थी
दुख तो ये है रफ़्ता रफ़्ता मैं भी नंगा रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम
मौसम-ए-गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं
है गरेबाँ नंग-ए-पैराहन जो दामन में नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जले जाते हैं बढ़ बढ़ कर मिटे जाते हैं गिर गिर कर
हुज़ूर-ए-शम'अ परवानों की नादानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-मय बे-ख़ुद-ओ-बे-ताब न क्यूँ हो साक़ी
मौज-ए-बादा है कि दर्द उठता है पैमानों में