आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "چاندی"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "چاندی"
ग़ज़ल
बिखराते हो सोना हर्फ़ों का तुम चाँदी जैसे काग़ज़ पर
फिर इन में अपने ज़ख़्मों का मत ज़हर मिलाओ इंशा-जी
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
सुना है बर्फ़ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के
कुछ आँच पा के ये चाँदी पिघल तो सकती है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तिरे दुख में हमारे बाल चाँदी हो गए हैं
और इस चाँदी ने क़ब्ल अज़ वक़्त बूढ़ा कर दिया है