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ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
निकाला चाहता है काम क्या ता'नों से तू 'ग़ालिब'
तिरे बे-मेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तुम्हारे दर से मैं कब उठना चाहता था मगर
ये मेरा दिल है कि मुझ को उठा के बैठ गया