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ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
ये दिल बच कर ज़माने भर से चलना चाहे है लेकिन
जब अपनी राह चलता है अकेला होने लगता है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
दहर में 'मजरूह' कोई जावेदाँ मज़मूँ कहाँ
मैं जिसे छूता गया वो जावेदाँ बनता गया
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है
मैं चलता हूँ मुझे चेहरा तुम्हारा याद रहता है