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ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
छुपाया हुस्न को अपने कलीम-उल्लाह से जिस ने
वही नाज़-आफ़रीं है जल्वा-पैरा नाज़नीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
प्यासी ज़मीं के मुँह में मेंह का चुवाया पानी
और बादलों को तू ने मेंह का निशाँ बनाया
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
क्या छेड़ है आँचल से गुलिस्ताँ में सबा की
उन से रुख़-ए-रौशन को छुपाया नहीं जाता