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ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
तिरी कज-अदाई से हार के शब-ए-इंतिज़ार चली गई
मिरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मिरे ग़म-गुसार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अब वो घर इक वीराना था बस वीराना ज़िंदा था
सब आँखें दम तोड़ चुकी थीं और मैं तन्हा ज़िंदा था
जौन एलिया
ग़ज़ल
शौक़ का रंग बुझ गया याद के ज़ख़्म भर गए
क्या मिरी फ़स्ल हो चुकी क्या मिरे दिन गुज़र गए