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ग़ज़ल
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
क़स्र-ए-हाली के हवाली में ज़रा तुम 'मजरूह'
अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद न बनाना हरगिज़
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
हम एक तरतीब से तुम्हारी उदास नज़्मों पे रो चुके हैं
कि आँसुओं और ख़ून के बीच डेढ़ सिसकी का सम रखा था
ओसामा ख़ालिद
ग़ज़ल
डेढ़ पहर ठहरूँगा ये कह कि यार मिरे घर आया था
पर घबरा के जाने को उट्ठा जूँही पहर पर तीन बजीं