कोई हैजान इस को कहता है कोई विज्दान इस को कहता है
कोई हैजान इस को कहता है कोई विज्दान इस को कहता है
कोई कहता है शा'इरी है 'अबस कोई इम्कान इस को कहता है
अपनी अपनी पसंद है सब की अपना अपना है सब का ज़ौक़-ए-सुख़न
वाह कहता है कोई सुन के ग़ज़ल कोई हिज़्यान इस को कहता है
हासिल-ए-'उम्र एक शा'इर का डेढ़ दो सौ वरक़ का मजमू'आ
कोई दीवाना-पन समझता है कोई दीवान इस को कहता है
फ़र्क़ हुस्न-ए-नज़र का होता है एक मोती को देखने में भी
कोई कहता है संग-रेज़ा इसे कोई मरजान इस को कहता है
ले के फिरते हैं अपने सर पे सभी अपने अपने यक़ीन की चादर
कोई कहता है गाए माता है कोई हैवान इस को कहता है
काला पत्थर है जो 'अक़ीदे का सब को मिलता है ये विरासत में
कोई बे-जान इस को कहता है कोई भगवान इस को कहता है
लौह-ए-महफ़ूज़ के मुसन्निफ़ ने जो बराए-बशर किया तहरीर
कोई इंजील इस को कहता है कोई क़ुरआन इस को कहता है
ख़ूब दुर्रे पड़ेंगे 'वासिफ़' को रोज़-ए-महशर दरोग़-गोई पर
एक क़तरे की बात होती है और ये तूफ़ान इस को कहता है
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