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ग़ज़ल
दिल-ए-ना-मुतमइन ऐसा भी क्या मायूस रहना
जो ख़ल्क़ उट्ठी तो सब कर्तब तमाशा ख़त्म होगा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
टेढ़े-मेढ़े आले ले के जिस्म पे टूट पड़े हैं
शायद जान गए हैं हुस्न की मैं पूजा करता था
ओसामा ज़ाकिर
ग़ज़ल
किस का भेद कहाँ की क़िस्मत पगले किस जंजाल में है
बाज़ी है इक सादा-काग़ज़ सारा कर्तब चाल में है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
इंसानों के कर्तब देख के 'राहिब' पास के जंगल में
नीम के पेड़ की शाख़ पे बैठा नटखट बंदर चौंक पड़ा
इमरान राहिब
ग़ज़ल
वो तो बाज़ीगर हैं उन का मक़्सद खेल दिखाना है
तुम तो फ़रज़ाने हो साहिब कब तक कर्तब देखोगे