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ग़ज़ल
असीर अपने ख़यालों का बना कर एक दिन 'मोहसिन'
ख़बर क्या थी मुझे मेरे लिए कमयाब कर देगा
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
वक़्त बे-मेहर है इस फ़ुर्सत-ए-कमयाब में तुम
मेरी आँखों में रहो ख़्वाब-ए-मुजस्सम की तरह
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई