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ग़ज़ल
इस कुम्बा-परवर दुनिया में बेकस की हिमायत कौन करे
जब ग़ासिब मुंसिफ़ बन जाएँ इंसाफ़ की ज़हमत कौन करे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
बीवी बच्चे नाती पोते दोस्त शनासा रिश्ते-दार
मेरे उसूलों से ना-वाक़िफ़ इक कुम्बा है सब का सब
इसहाक़ असर
ग़ज़ल
जब कभी अपनी ज़रूरत से निकल जाती हूँ मैं
कुम्बा वालों में मुझे बदनाम कर जाती है रात
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
मैं तुझ से क्या ख़ौफ़ खाऊँ इतनी ख़बर है मुझ को
कि एक कुम्बा है जिस पे लिक्खी गई हूँ मैं भी
रुख़साना सबा
ग़ज़ल
घर किसे कहते हैं कुम्बा किस बला का नाम है
इन सवालों में अगर उलझे तो मर जाएँगे हम