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ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
किचन में तोड़ कर अंडे सितम तोड़ा है ये कह कर
सफ़ेदी आप की है और सारी ज़र्दियाँ मेरी
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
ترا قد نیشکر جانوں مکیاں جوبن چنپے کیاں دو
ترے سینے کے جل میانے کچن کے دو کنول دیکھا
हाश्मी बीजापुरी
ग़ज़ल
वक़्त के नाख़ून से यादें हैं कुछ ख़ुरची हुईं
एक पुराना सा मकाँ दीवार-ए-जाँ झड़ती हुईं