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ग़ज़ल
नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
गाल की जानिब झुकती है शरमाती है हट जाती है
आज इरादा ठीक नहीं है जान तुम्हारी बाली का
मुमताज़ गुरमानी
ग़ज़ल
पहुँच चुका है ज़माना ज़मीं से चाँद तिलक
कहाँ मैं ज़ुल्फ़, नज़र, गाल में पड़ा हुआ हूँ