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ग़ज़ल
सच्चों को झूटा गर्दाना हम भी कितने पागल हैं
और झूटों को सच्चा जाना हम भी कितने पागल हैं
सय्यद आलिम वास्ती
ग़ज़ल
क्या क़यामत है कि 'ख़ातिर' कुश्ता-ए-शब थे भी हम
सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
ख़ातिर ग़ज़नवी
ग़ज़ल
मालिक से और मिट्टी से और माँ से बाग़ी शख़्स
दर्द के हर मीसाक़ से रु-गर्दानी करता है