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ग़ज़ल
चुपके चुपके मुझ को रोते देख पाता है अगर
हँस के करता है बयान-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल-ए-इंसाँ अगर शाइस्ता-ए-असरार हो जाए
लब-ए-ख़ामोश-फ़ितरत ही लब-ए-गुफ़्तार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ
ज़िक्र-ए-मुर्ग़ान-ए-गिरफ़्तार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अल्फ़ाज़-ए-ख़ल्क़ हम बिन सब मोहमलात से थे
मा'नी की तरह रब्त-ए-गुफ़्तार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
तिरछी नज़रों में वो उलझी हुई सूरज की किरन
अपने दुज़्दीदा इशारों में गिरफ़्तार आँखें