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ग़ज़ल
आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ख़ुश-मज़ाक़ी शर्त हो जिस के नज़ारे के लिए
उस गुल-ए-ख़ुद-रू को यारब ज़ीनत-ए-वीराना कर