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ग़ज़ल
दिल की गिनती न यगानों में न बेगानों में
लेकिन उस जल्वा-गह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
साँसें जितनी मौजें उतनी सब की अपनी अपनी गिनती
सदियों का इतिहास समुंदर जितना तेरा उतना मेरा
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
हमेशा क्या यूँ ही क़िस्मत में है गिनती गिना देना
कोई नाला न लब पर लाइक़-ए-अंजाम आएगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
आठ तक तो ये गिनती भी आसान थी तू ने पढ़ ली, सो अब...
केलकुलेटर पकड़ और सुना! अपना नौ का पहाड़ा मुझे
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
ज़िंदगी रेत के ज़र्रात की गिनती थी 'नदीम'
क्या सितम है कि अदम भी वही सहरा निकला
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
नसीब अपना सुख़नवरों में हमारी गिनती न हो सकेगी
'उमर' अदाकार हम अगर बा-कमाल होते कमाल होते
आबिद उमर
ग़ज़ल
गिनती एक इक नाम की हर गोर में मुर्दे हैं दफ़्न
बाद-ए-मुर्दन भी हुई दुश्वार तन्हाई मुझे
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
क्या बात है शहरों में सिमट आए हैं सारे
जंगल में तो गिनती के ही कुछ साँप रहे हैं