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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा
लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
कुंज-ए-उज़्लत में मिसाल-ए-आसिया हूँ गोशा-गीर
रिज़्क़ पहुँचाता है घर बैठे ख़ुदा मेरे लिए
मीर अनीस
ग़ज़ल
गोशे में तिरी चश्म-ए-सियह-मस्त के दिल ने
की जब से जगह ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार भी छोड़ा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ऐ दर्द अता करने वाले तू दर्द मुझे इतना दे दे
जो दोनों जहाँ की वुसअत को इक गोशा-ए-दामन-ए-दिल कर दे
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
एक ज़रा सा गोशा दे दो अपने पास जहाँ से दूर
इस बस्ती में हम लोगों को हाजत एक मकाँ की है