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ग़ज़ल
लख़्त-ए-दिल से जूँ छिड़ी फूलों की गूंधी है वले
फ़ाएदा कुछ ऐ जिगर इस आह-ए-बे-तासीर का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
इन ज़ुल्फ़ों में गूँधेंगे हम फूल मोहब्बत के
ज़ुल्फ़ों को झटक कर हम ये फूल गिरा दें तो