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ग़ज़ल
लीडरी चाहो तो लफ़्ज़-ए-क़ौम है मेहमाँ-नवाज़
गप-नवीसों को और अहल-ए-मेज़ को राज़ी करो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
है जिंस परी सा कुछ आदम तो नहीं असलन
इक आग लगा दी है उस अमर्द-ए-ख़ुश-गप ने
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ज़ियाँ गर कुछ हुआ तो उतना जितना सूद होता है
यही जो हस्त है इस पल यही तो बूद होता है
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
मिलना-जुलना गप्प ठहाके पल पल अपने साथ चले
आख़िरी शब सब छूट गए बस इक साथी था सन्नाटा
संजय कुमार कुन्दन
ग़ज़ल
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है