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ग़ज़ल
भाग रही है गेंद के पीछे जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे काले नारों से अब तक डरी नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
क्रिकेटर बाज़ इस अंदाज़ से छका लगाते हैं
ज़मीन पर गेंद होती है फ़ज़ा में बैट होता है
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
रफ़्ता रफ़्ता रख़्ना रख़्ना हो गई मिट्टी की गेंद
अब ख़लीजों के सिवा क्या रह गया नक़्शे के बीच
अनवर मसूद
ग़ज़ल
अपने दिल में गेंद छुपा कर उन में शामिल हो जाता हूँ
ढूँडते ढूँडते सारे बच्चे मेरे अंदर आ जाते हैं
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
ترے اس نخل خرماں کوں جوبن امرت دو پھل لاگے
کچن کی گیند کوں نیلم جڑے سو میں اصل دیکھا
हाश्मी बीजापुरी
ग़ज़ल
उछाला गेंद सासर को अगर मंसूर ने हक़ पर
खड़ी हो रू-ब-रू सूली भी क्या ख़ूब उस को झेली है
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
गेंद सी है बे-वज़्न ये दुनिया मेरी ठोकर में
मैं जो कहूँ तुम इस को उछालो जुरअत मत करना
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
उड़ते हैं दो-चार परिंदे मंज़र धुँदला धुँदला है
पर्दे पर इक गेंद लगी है या सूरज का साया है