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ग़ज़ल
खुल के रो लेने से दिल हलकान हो जाएगा क्या
मुस्कुरा दूँगा तो सब आसान हो जाएगा क्या
बालमोहन पांडेय
ग़ज़ल
बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते
मगर दो जिस्म सिर्फ़ इक जान से हलकान हो जाते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
उस को पाने की कोशिश में जान तिरी हलकान है क्यूँ
दुनिया अंदर से पीतल ऊपर सोने का पानी है
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
दो दो दरिया मेरी आँखों में रवाँ रहने लगे
और मैं प्यास से हलकान था अच्छा-ख़ासा