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ग़ज़ल
मिरे दुश्मन को इतनी फ़ौक़ियत तो है बहर-सूरत
कि तू है उस की हम-साई मुझे अच्छा नहीं लगता
आमिर अमीर
ग़ज़ल
रात-भर चाँद की गलियों में फिराती है मुझे
ज़िंदगी कितने हसीं ख़्वाब दिखाती है मुझे