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ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
तरीक़-ए-इश्क़ पे हँसती तो है ख़िरद लेकिन
ये गुमरही कहीं मंज़िल से हम-कनार न हो
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
आँखों में इक लतीफ़ सी मस्ती भरी हुई
नज़रों को हम-कनार-ए-गुलिस्ताँ किए हुए
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
ये और बात नसीब-ए-नज़र नहीं लेकिन
नफ़स नफ़स तिरे जल्वों से हम-कनार तो है