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ग़ज़ल
झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की
हौले हौले डोल रही है घास नदी के किनारे की
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
पक्की सड़कों वाले शहर में किस से मिलने जाएँ
हौले से भी पाँव पड़े तो बज उठती हैं खड़ांव
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
जफ़ाएँ हम पे होती हैं करम ग़ैरों पे होता है
यहाँ गिरते हैं ओले और वहाँ बरसाते हैं पानी
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
किस के होने की ख़बर देते हैं ये दीवार-ओ-दर
जाने क्यूँ लगता है मुझ को ये मकाँ देखा हुआ
ख़ालिद अहमद
ग़ज़ल
हम पे जो गुज़री हम जाने हैं कोई क्या समझाएगा
हम मिट के बर्बाद हुए जब तुम क्या दिल को टटोले हो
इरफ़ान अहमद मीर
ग़ज़ल
छू गई नग़्मों को तेरी ये मोहब्बत हौले से
देख अंदाज़-ए-बयाँ ये शाइ'राना बन गया