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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी
वो ज़ालिम आसमाँ जाने मिरी दुनिया कहाँ होगी
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे
चमन में आएगी फ़स्ल-ए-बहाराँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
फ़र्ज़ पर क़ुर्बान होने का इक अपना हुस्न है
और हो जाता है कुछ इंसाँ हसीं मरने के बाद
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
मत कहो क़िस्मत है अपनी बे-दिली नाग़ुफ़्तनी
फिर सहर होगी दरख़्शाँ फिर भले आएँगे लोग
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
इक अजनबी था कहीं रह में खो गया होगा
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
यूँ ही अकेले रहा किए तो उदास होगे निराश होगे
जो आफ़ियत चाहते हो 'राशिद' तो चंद रिश्ते सँभाल रखना
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
नाम कितने ही लिखे हैं दिल की इक मेहराब पर
होगा इन में ही तुम्हारा नाम भी ढूँडो ज़रा
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल
हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो