aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "یک"
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िलगर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक
कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुतकभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आताये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दाहया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैंये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्म को तुझ से हैं उमीदेंये आख़िरी शम'एँ भी बुझाने के लिए आ
वो मिले तो ये पूछना है मुझेअब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या
रूह प्यासी कहाँ से आती हैये उदासी कहाँ से आती है
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोतीये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैंतुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भीमैं भी बरबाद हो गया तू भी
यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईंजिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा
ख़त-ए-लख़्त-ए-दिल यक-क़लम देखते हैंमिज़ा को जवाहर रक़म देखते हैं
फ़र्दा ओ दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गयाकल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़याँ दिल में ज़ोफ़ से हवस-ए-यार भी नहीं
है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रबहम ने दश्त-ए-इम्काँ को एक नक़्श-ए-पा पाया
मैं चाहता हूँ तू यक-दम ही छोड़ जाए मुझेये हर घड़ी तिरे जाने का एहतिमाल न हो
कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अ'तन तग़ाफ़ुलमुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैंवफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम
'वली' कूँ कहे तू अगर यक बचनरक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे
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