aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "अज़ल"
मैं बिस्तर-ए-ख़याल पे लेटा हूँ उस के पाससुब्ह-ए-अज़ल से कोई तक़ाज़ा किए बग़ैर
ये है लम्हों का एक शहर-ए-अज़लयाँ की हर बात ना-गहानी है
अजल भी जिन को सुन कर झूमती हैवो नग़्मे ज़िंदगी के गा रहा हूँ
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
जन्नत में भी 'मोमिन' न मिला हाए बुतों सेजौर-ए-अजल-ए-तफ़रक़ा-पर्दाज़ तो देखो
न जिस का नाम है कोई न जिस की शक्ल है कोईइक ऐसी शय का क्यूँ हमें अज़ल से इंतिज़ार है
हम से छिना है नाफ़-पियाला तिरा मियाँगोया अज़ल से हम सफ़-ए-लब-तिश्नगाँ के थे
है कुशादा अज़ल से रू-ए-ज़मींहरम-ओ-दैर बे-फ़सील नहीं
फिरे राह से वो यहाँ आते आतेअजल मर रही तू कहाँ आते आते
इस जज़ीरे पर अज़ल से ख़ाक उड़ती है हवामंज़िलों के भेद फिर भी रास्तों में क़ैद हैं
हर इक क़दम अजल था हर इक गाम ज़िंदगीहम घूम फिर के कूचा-ए-क़ातिल से आए हैं
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकरमुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
जाने क्या कह दिया था रोज़-ए-अज़लआज तक इम्तिहान है प्यारे
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल थे वो दयारजिन के अब नाम-ओ-निशाँ याद नहीं
हुस्न-ए-अज़ल की शान दिखा कर चले गएइक वाक़िआ' सा याद दिला कर चले गए
मैं या'नी अज़ल का आर्मीदालम्हों में बिखर के थक गया हूँ
करिश्मा-साज़ी-ए-हुस्न-ए-अज़ल अरे तौबामिरा ही आईना मुझ को दिखा के लूट लिया
जिसे मैं तोड़ चुकी हूँ वो रौशनी का तिलिस्मशुआ-ए-नूर-ए-अज़ल के सिवा कुछ और न था
अज़ल-ए-दास्ताँ से इस दम तकजो भी गुज़री इक आन में गुज़री
कहाँ का सैल-ए-अजल ता-किनार-गाह-ए-अबदमैं हूँ अदम में सभी को लताड़ डालूँगा
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