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ग़ज़ल
शख़्सियत जिस की अनल-हक़ की सज़ा-वार लगे
हर तरफ़ उस के न क्यों फ़ल्सफ़ा-ए-दार लगे
शारिक़ जमाल नागपुरी
ग़ज़ल
अनल-हक़ जुज़्व-ए-ला-यंफक बना है मेरे ईक़ाँ का
यही है क़ुल-हुवल्लाहु-अहद मस्तों के क़ुरआँ का
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-जज़्ब-ए-अनल-हक़ में रंग-ए-हू हक़ है
हुए जो अहल-ए-नज़र उन का साफ़ है मिर्रात
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
रह गया बन कर जुनून-ए-इश्क़ शरह-ए-काएनात
एक वो लफ़्ज़-ए-अनल-हक़ जो कि गुस्ताख़ाना था
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
जिस ने ता'लीम-ए-अनल-हक़ दी तुझे रोज़-ए-अलस्त
हैं उसी उस्ताद के शागिर्द ऐ मंसूर हम