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ग़ज़ल
कुछ नहीं अश्क-ए-नदामत के सिवा साइल के पास
शर्म आती है मुझे जाते हुए क़ातिल के पास
बशीरुद्दीन राज़
ग़ज़ल
मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे
बस इतना कर के दुनिया से मुझे बे-आरज़ू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
शिकवा ग़लत है रहमत-ए-परवरदिगार से
मुझ को ही क़द्र-ए-अश्क-ए-नदामत नहीं रही
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
क़तरा-ए-अश्क-ए-नदामत मेरी चश्म-ए-तर में है
पेश करता हूँ वही या-रब जो मेरे घर में है