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ग़ज़ल
मैं कि ख़ुद राह में भूल आई हूँ असबाब-ए-सफ़र
कोई मंज़िल का पता पूछ रहा है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
सूफ़ी ये सहव महव हुए सद्द-ए-बाब-ए-उंस
क्या इम्बिसात कार-गह-ए-हसत-ओ-बूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
क्या हैं अस्बाब-ए-ज़वाल-ए-मुस्लिम-ए-आशुफ़्ता-हाल
कल जो हाकिम था वो अब महकूम कैसे हो गया
क़ासिम जलाल
ग़ज़ल
मेरे ग़म-ख़ाने की क़िस्मत जब रक़म होने लगी
लिख दिया मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी मुझे