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ग़ज़ल
उस को इनआम-ए-ख़ुदी और इस पर लुत्फ़-ए-बे-ख़ुदी
वो करम करते हैं ज़र्फ़-ए-अहल-ए-इरफ़ाँ देख कर
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
है करामत इश्क़ की पहुँचा मैं बाम-ए-अर्श तक
गोया इक दरवेश हूँ मैं अहल-ए-इरफ़ाँ की तरह
रऊफ़ यासीन जलाली
ग़ज़ल
अहल-ए-इरफ़ाँ के लिए होता है ये सामान-ए-वज्द
झूमते रहते हैं ले कर तेरे दीवाने का नाम
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
मिज़ाज-ए-अहल-ए-दिल की इम्तियाज़ी शान तो देखो
जो दुश्मन जान-ओ-दिल का है उसी से प्यार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तिरा उसूल मियाँ
हम क्यूँ छोड़ें उन गलियों के फेरों का मामूल मियाँ