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ग़ज़ल
आब-रूद-ए-ज़ीस्त के कुछ घूँट ज़हरीले भी हों
मैं ने कब चाहा था हर क़तरा मुझे इक्सीर हो
राग़िब अख़्तर
ग़ज़ल
उस आब-रूद के क़ुर्बां कि जिस में धुल धुल कर
कँवल खिलाती है तख़्ईल की ज़बान-ए-ग़ज़ल
कुंदन अरावली
ग़ज़ल
बरहमन आब-ए-गंगा शैख़ कौसर ले उड़ा उस से
तिरे होंटों को जब छूता हुआ 'मुल्ला' का जाम आया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
बरहमन आब-ए-गंगा शैख़ कौसर ले उड़ा इस से
तिरे होंटों को जब छूता हुआ 'मुल्ला' का जाम आया
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
हनीफ़ अख़गर
ग़ज़ल
साक़ी हों 'अता चश्म से पैमाने इन्हें भी
ख़ुद आए नहीं रिंद ये बुलवाए हुए हैं