aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "आलम-ए-एहतिज़ार"
तुम ने शब-ए-फ़िराक़ में देखीं नहीं जो हालतेंआज वो आ के देख लो आलम-ए-एहतिज़ार में
'आलम'-ए-शौक़ में शामिल है ज़माने की रमक़साहब-ए-ज़ौक़ समझदार सुनें ग़ौर करें
दुनिया का चलन देख के लगता तो यही हैअब कुछ भी नहीं आलम-ए-असबाब से आगे
क़त्ल होते हैं यहाँ नारा-ए-ऐलान के साथवज़्अ-दारी तो अभी आलम-ए-सफ़्फ़ाक में है
खोए खोए से रहते हो 'आलम'ये तुम्हें क्या हुआ कहो तो सही
मुजरिम को 'अदालत से दिला देना रिहाई'आलम' ये वकीलों के लिए कुछ भी नहीं है
जहाँ तक हो सके 'आलम किसी से क़र्ज़ मत लेनामियाँ ये क़र्ज़-दारी ख़ैर-ओ-बरकत छीन लेती है
मैं सफ़ीरान-ए-मोहब्बत की सदा हूँ 'आलम'मर भी जाऊँ तो ज़माने को सुनाई दूँगा
'आलम' दिल-ए-असीर को समझाऊँ किस तरहकम-बख़्त ए'तिबार के क़ाबिल नहीं है वो
ये खेल सिर्फ़ तुम्हीं खेलते नहीं 'आलम'सभी ख़ला में लकीरें बनाते रहते हैं
चश्मे की तरह 'आलम' अशआ'र फूटते हैंकोह-ए-गिराँ की सूरत में भी उबल रहा हूँ
क्या बुरी शय है ये शोहरत की हवस भी 'आलम'अच्छे-अच्छों को भी अच्छा नहीं रहने देती
दिल सागर-ए-अफ़्कार में डूबा हो तो 'आलम'कानों को मज़ा नग़्मा-सराई नहीं देती
हर किसी से नहीं रखता हूँ मैं रिश्ता 'आलम'हर किसी से ये तबी'अत भी नहीं मिलती है
वक़्त के सारे चक्कर हैं ये 'आलम'-जी वर्नायहाँ किसी को कोई नज़र-अंदाज़ नहीं करता
ये देखते हैं कि कल रंग-ए-सुब्ह क्या होगाकि आफ़्ताब का 'आलम' है इंतिज़ार अभी
अहद-ए-हाज़िर में वफ़ाओं का नतीजा क्या हैतुम जो 'आलम' से मिलोगे तो समझ जाओगे
तिरे हुस्न की कहानी मिरे इश्क़ का फ़सानाबहुत आम हो चुका है ग़म-ए-आशिक़ी से पहले
ज़ुल्मत-ए-शब में मैं तन्हा ही लड़ूँगा 'आलम'इन चराग़ों ने अगर आँख दिखाई मुझ को
ज़र्द ज़र्द चेहरे हैं ख़ौफ़-ए-मर्ग से 'आलम'अब तो कोई भी सूरत चाँद सी नहीं मिलती
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