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ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
मय बड़ी इफ़रात से थी फिर भी सरशारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
उस की आल वही जो उस के नक़्श-ए-क़दम पर
सिर्फ़ ज़ात की हम ने आल-ए-सादात नहीं देखी