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ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-महर से हो इख़्तिलाज-ए-क़ल्ब-ए-फ़ुज़ूँ
बहाना-ए-ख़फ़क़ाँ जल्वा-ए-क़मर हो जाए
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
हालत-ए-क़ल्ब सर-ए-बज़्म बताऊँ क्यूँकर
पर्दा-ए-दिल में है इक पर्दा-नशीं का लालच
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ
गर्दन को इत्तिलाअ न ख़ंजर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है इसी में क़ल्ब-ए-महज़ूँ शर्तिया कहता हूँ मैं
खोल मुट्ठी तेरी चोरी मह-लक़ा पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
क़ाबिल-ए-तारीफ़ है तेरे फ़िदाई का इश्क़