मसरूफ़ हैं तवाफ़ में मय-ख़्वार आज-कल
काबा बना है ख़ाना-ए-ख़म्मार आज-कल
कूचा है उन का मिस्र का बाज़ार आज-कल
चारों तरफ़ खड़े हैं ख़रीदार आज-कल
तार-ए-नज़र भी टुकड़े हो देखे अगर कोई
ऐसी उठी है यार की तलवार आज-कल
जाती है ऐसे ग़ैरत-ए-यूसुफ़ पर अपनी जान
सारा जहाँ है जिस का ख़रीदार आज-कल
हर हर क़दम पे होते हैं उश्शाक़ पाएमाल
सीखी है तुम ने किस से ये रफ़्तार आज-कल
बिजली भी गिर पड़ी तो मैं देखूँ जमाल-ए-यार
अल्लाह रे ये हसरत-ए-दीदार आज-कल
तेरी कमर से देते हैं तश्बीह ख़ास-ओ-आम
लाग़र हुआ है ऐसा तन-ए-ज़ार आज-कल
हद्दाद वहशियों को है सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
ज़ंजीर-ओ-तौक़ दोनों हैं दरकार आज-कल
सय्याद-ओ-बाग़बान तिरे दुश्मन हैं अंदलीब
रहना न तू चमन में ख़बर-दार आज-कल
मैं लन-तरानियों को न मानूँगा आप की
मूसा-सिफ़त हूँ तालिब-ए-दीदार आज-कल
देते हैं वो सज़ा मुझे ग़ैरों के जुर्म पर
कोई नहीं है मुझ सा गुनहगार आज-कल
फिर इख़्तिलाज-ए-क़ल्ब हुआ फिर हुआ जुनून
फिर हो गया है इश्क़ का आज़ार आज-कल
बुलबुल है शाख़-ए-गुल पे न क़ुमरी है सर्व पर
बर्बाद सब ख़िज़ाँ से है गुलज़ार आज-कल
ताऊस-ओ-कब्क दोनों हैं वारफ़्ता हाल पर
चलता है नाज़ की जो वो रफ़्तार आज-कल
दिल किस सनम पे आया है बतलाओ तो 'वफ़ा'
पुर-दर्द तुम जो कहते हो अशआ'र आज-कल
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