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ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं
थोड़ा सा इख़्तिलाफ़ है मर्द-ए-ख़ुदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
उस को था सख़्त इख़्तिलाफ़ ज़ीस्त के मत्न से सो वो
बर-सर-ए-हाशिया रहा और कमाल कर गया